बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
परिचय
किसी भी विज्ञान, शास्त्र या विषय के व्यवस्थित एवं उचित अध्ययन के लिए यह जरूरी है कि उस विषय के क्षेत्र का सही-सही निर्धारण के बाद सम्बन्धित शास्त्र या विषय का अध्ययन करना। नैतिक दर्शन या नीतिशास्त्र एवं नैतिकता के व्यवस्थित अध्ययन के लिये भी जरूरी है कि सर्वप्रथम इसके विषय क्षेत्र का ठीक निर्धारण कर लिया जाये।
नीतिशास्त्र का क्षेत्र
नैतिक दर्शन या नीतिशास्त्र के अन्तर्गत नैतिक चेतना से सम्बन्धित विषयों का एक विशिष्ट दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के मुख्य विषय हैं शुभ-अशुभ, उचित- अनुचित तथा धर्म-अधर्म आदि। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए नैतिक दर्शन के विषय क्षेत्र को निम्नलिखित रूप में निरूपित किया जा सकता है -
(1) नैतिक गुणों का स्पष्टीकरण - प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी रूप में नैतिक गुणों (Moral Qualities) की चर्चा जरूर ही किया करता है। उचित-अनुचित, शुभ-अशुभ, धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, गुण-दोष आदि नैतिक गुण माने जाते हैं। नैतिक दर्शन या नीतिशास्त्र में इन विभिन्न नैतिक गुणों के वास्तविक अर्थ का निर्धारण एवं विवेचन किया जाता है। इन नैतिक गुणों के आधार पर ही व्यक्ति के आचरण का मूल्यांकन किया जाता है।
(2) नैतिक निर्णय का विवेचन - नैतिक दर्शन में नैतिक निर्णय (Moral Judgement) का महत्वपूर्ण स्थान होता है। नैतिक दर्शन अनेक कार्यों के विषय में जो निर्णय दिया करता है उसे ही नैतिक निर्णय कहा जाता है। इसलिये नैतिक दर्शन को नैतिक निर्णयों का शास्त्र भी कहा जाता है। जब हम किसी व्यक्ति के ऐच्छिक कर्म को नैतिक दृष्टिकोण से उचित अथवा अनुचित, शुभ या अशुभ ठहराते हैं तो यह निर्णय नैतिक निर्णय ही होता है।
(3) नैतिक मापदण्डों का अध्ययन - किसी भी कर्म के विषय में नैतिक निर्णय देने के लिये किसी मापदण्ड की जरूरत होती है। इस प्रकार के मापदण्ड को नैतिक मापदण्ड (Moral Standard) कहा जाता है। नैतिक दर्शन या नीतिशास्त्र में मापदण्डों का निर्धारण एवं अध्ययन भी किया जाता है। हम कह सकते हैं कि वे समस्त नियम एवं आदर्श मापदण्ड कहलाते हैं जिनके आधार पर कर्मों के उचित - अनुचित, शुभ-अशुभ तथा अच्छे-बुरे का निर्णय किया जाता है।
(4) नैतिक पद्धति का अध्ययन - नीतिशास्त्र में नैतिक पद्धति (Ethical Method) का भी अध्ययन किया जाता है। वास्तव में प्रत्येक विषय में अध्ययन के लिये किसी विशिष्ट पद्धति को अपनाना पड़ता है। विषय के अध्ययन के लिये सम्बद्ध अध्ययन पद्धति का अध्ययन करना भी जरूरी होता है। नैतिक दर्शन में भी नैतिक पद्धति का अध्ययन किया जाता है।
(5) कर्तव्य तथा नैतिक बाध्यता का अध्ययन - यह सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिये उचित-अनुचित, शुभ-अशुभ के विचार का महत्व होता है। व्यक्ति जिन कर्मों को सही एवं शुभ समझता है, उनका पालन करना अपना कर्तव्य भी मानता है। भले ही व्यक्ति इस वर्ग के समस्त कर्मों को करने में सफल न हो लेकिन वह लगातार यह महसूस करता है कि उसे वैसा करना चाहिये। वह उचित एवं शुभ कर्मों को करने के लिये एक प्रकार की बाध्यता महसूस करता है। इस बाध्यता को नैतिक बाध्यता कहा जाता है। इस प्रकार के कर्तव्य तथा नैतिक बाध्यता (Duty and Moral Obligation) का अध्ययन भी नीतिशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना जरूरी है कि व्यक्ति अनुचित तथा अशुभ कर्मों से दूर रहना भी अपना कर्तव्य समझता है तथा इस प्रकार के अवांछनीय कर्मों को न करना भी उसके लिये बाध्यता होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नैतिक कर्तव्यों एवं बाध्यता का विशेष महत्व है। इनके वास्तविक अर्थ एवं स्वरूप आदि का अध्ययन एवं विश्लेषण भी नैतिक दर्शन के अन्तर्गत किया जाता है।
(6) सद्गुणों एवं अवगुणों का अध्ययन - स्पष्ट है कि नैतिक चेतना के अनुसार कुछ सद्गुण (Virtue) है तथा कुछ अवगुण (Vice)। नीतिशास्त्र में सद्गुणों तथा अवगुणों का भी विस्तृत एवं व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
(7) दण्ड तथा पुरस्कार का अध्ययन - स्पष्ट है कि नैतिक दृष्टिकोण से कुछ कर्म उचित एवं शुभ ठहराये जाते हैं तथा कुछ अनुचित एवं अशुभ। उचित एवं शुभ कर्मों के लिये किसी प्रकार के पुरस्कार की व्यवस्था होनी चाहिये तथा अनुचित एवं अशुभ कर्मों के लिये किसी न किसी प्रकार के दण्ड की भी व्यवस्था होनी चाहिये। पुरस्कार एवं दण्ड के अर्थ, स्वरूप, औचित्य अनौचित्य तथा सिद्धान्तों आदि का अध्ययन भी नीतिशास्त्र के ही क्षेत्र के अन्तर्गत किया जाता है।
(8) नैतिक भावना का अध्ययन - नीतिशास्त्र में नैतिक निर्णय का विशेष स्थान है। नैतिक निर्णय के साथ ही साथ नैतिक भावना (Moral Sentiment) का प्रश्न भी सम्बद्ध है। उचित एवं शुभ कर्मों के साथ एक प्रकार के आनन्द की अनुभूति सम्बद्ध रहती है। इसके विपरीत, अनुचित एवं अशुभ कर्मों के साथ एक प्रकार के विषाद की अनुभूति सम्बद्ध रहती है। इसी आनन्द एवं विषाद की अनुभूति को नैतिक भावना कहा जाता है। नीतिशास्त्र में इस नैतिक भावना का भी अध्ययन किया जाता है। नैतिक दर्शन नैतिक निर्णय में नैतिक भावना के स्थान का भी निर्धारण करता है।
(9) नैतिक आदर्शों का अध्ययन - नीतिशास्त्र के अन्तर्गत नैतिक आदर्शों के निर्धारण का भी कार्य किया जाता है। नैतिक आदर्शों की पृष्ठभूमि में ही व्यक्ति के कर्मों का मूल्यांकन किया जाता है।
(10) मनोवैज्ञानिक, सामाजिक एवं राजनैतिक मान्यताओं का अध्ययन - यह सत्य है कि नैतिक दर्शन या नीतिशास्त्र में मुख्य रूप से व्यक्ति के आचरण का अध्ययन किया जाता है. तथा आदर्श आचरण के स्वरूप को निर्धारित करने का प्रयास किया जाता है। व्यक्ति के आचरण के आदर्शों को जानने के लिये मनोवैज्ञानिक मान्यताओं को जानना जरूरी है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए नैतिक दर्शन में मनोवैज्ञानिक मान्यताओं का भी अध्ययन किया जाता है। ऐच्छिक कर्मों के विश्लेषण का कार्य भी मनोवैज्ञानिक मान्यताओं के ही आधार पर होता है। अतः नैतिक दर्शन के लिये मनोवैज्ञानिक मान्यताओं की जानकारी जरूरी है।
इसी प्रकार नैतिक निर्णय, पुरस्कार एवं दण्ड आदि के सैद्धान्तिक अध्ययन के लिये आत्मा की अमरता, इच्छा-शक्ति की स्वतन्त्रता आदि का विवेचन आवश्यक होता है। ये विषय मूल रूप से दर्शनशास्त्र के विषय हैं, अतः नैतिक दर्शन के लिये इन दार्शनिक मान्यताओं का अध्ययन भी जरूरी होता है।
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- प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
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